पता नहीं,किसे कब और किस घड़ी, कब्र नसीब हो जाएं।
इससे पहले कि ख़ुदा हम तेरे ओर क़रीब हो जाएं।
अच्छा है मुहब्बत का किरदार, निभा लेंगे, कोई
उज्र नहीं है,पहले उसके मुनासिब हो जाएं।
दिल का पत्थर बिखरा पड़ा है चारों ओर,ख़ुदा
करे उसकी दस्तक से पहले वाजीब हो जाएं।
उसको रोशनी बेहत पसंद है, कुछ हो
सकता है हमारे बीच,जो सूरज मेरा नसीब हो जाएं।
उस चांद को छत पे ला सकु, वैसी
में सोचू ओर तू तरकीब हो जाएं।
अभी तू नसीब मै है तो आजमा ही लू,ज़रा क़रीब से,
वरना पता नहीं कब नसीब, बदनसीब हो जाए।
तुझे अंधा होता देखना चाहता हूं मेरे प्यार मै,
डर है कि कहीं खड़ा कोई रकीब हो न हो जाए।___Rajdeep Kota